Sunday, May 21, 2017

रिश्तों की ऊष्मा, भावनाओं की कोमलता और मानवता के मूल्यों से स्पंदित ‘रिंगटोन’

पुस्तक समीक्षा
रिश्तों की ऊष्मा, भावनाओं की कोमलता और मानवता के मूल्यों से स्पंदित ‘रिंगटोन’

रजनी रमण शर्मा

गुजरे समाजों की तुलना में आज का हमारा समाज, बल्कि पूरी दुनिया में जो ग्लोबल समाज विद्यमान है, वह बहुत नया है,यों कहें कि हर दिन वह और भी नया होता जा रहा है. मेरा मानना है कि इस समाज के विराट हिस्से में न थमने वाला कोलाहल है, अकुलाहट है, हलचल है, पर इन हलचलों में कहीं एक ठहराव भी नजर आता है. इस शीतल ठहराव में कवि,कथाकार,व्यंग्यकार, ब्रजेश कानूनगो की छोटी-बड़ी कहानियों की किताब ‘रिंगटोन’, अपने चारों ओर बिखरे परिद्रश्य को पूरी क्षमता के साथ स्थापित करती है.
‘रिंगटोंन’ संग्रह में कुल पच्चीस कहानियां हैं. संकलन की अपेक्षाकृत बड़ी कहानियां भी दो-ढाई मुद्रित पृष्ठों से अधिक लम्बी नहीं हैं. यह यह संतोषजनक और आज के पाठक की प्रवत्ति के अनुकूल है.

वर्त्तमान समय की पूंजीवादी व्यवस्था में व्यक्ति और समाज के बीच के अंतर्विरोधों के बीच से उत्पन्न व्यक्तित्व विघटन की समस्या ‘रिंगटोन’, ‘जन्मदिन’, तथा ‘मोस्किटो बाइट’ जैसी कहानियों में पूरी शिद्दत के साथ सामने आती हैं. अलग हटकर ‘जन्मदिन’ को एन्जॉय करने धनपति सेठ अनाथालय में टी-शर्ट और महंगी टाफियाँ का वितरण करते हैं. बेटे का जन्मदिन जो है. दूसरी ओर शिवकुमार जो अनाथालय का प्रतिभाशाली विद्यार्थी है, अपने दसवें जन्म दिन के लिए हवेली में मनने वाले जन्म दिन का सपना भर देखने को अभिशप्त है. ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे शक्ति दें ताकि मेहनत करके जीवन में आगे बढ़ सके.

शीर्षक कहानी ‘रिंगटोन’ लेंडलाइन टेलीफोन से स्मार्ट फोन तक के समय और संवेग को कथा माध्यम से उजागर करने का काम बखूबी किया गया है. आधुनिकीकरण और विकास के साथ नई समस्याएँ भी आती हैं तो साहित्य में भी उनका आना लाजिमी है. इसी तरह ‘माँस्किटो बाइट’ में बेटा सोफ्टवेयर इंजीनियर है, बहू मल्टीनेशनल में वित्तीय सलाहकार, पोता साहित्यकार मधुकर जी के पास. बहू विमेन हॉस्टल में और पुत्र अमरीका में. एक दिन दादा को बेटे का फोन आता है कि वे अपने पोते रूपम को होस्टल में डाल दें क्योंकि घर पर रहकर उसे हिन्दी की आदत पड़ जायेगी तो बाद में उसके कैरियर में बाधक होगी. यहाँ सवाल हिन्दी का नहीं है. अपनी भाषा से दूर हो जाना अपनी संस्कृति से दूर हो जाना है. संस्कृति विहीन समाज का निर्माण करना ही बाजार का उद्देश्य है. भाषा नहीं तो समाज नहीं. सचेत होना होगा.
भाषा के बाद सवाल आता है ‘सभ्यता’ का. यह वह दौर है जब पहले से चली आ रही परम्पराओं, मान्यताओं, व्यवस्थाओं और व्यवहार आदि को नकारने और परिवर्तित भी किया जा रहा है. ‘सभ्यता’ कहानी में मम्मी-पापा के अनपेक्षित आदेश से ताऊ जी के चरण छूने वाली छोटी बच्ची पारुल अपनी पीठ थपथपाने पर बेधडक कहती है-‘लड़कियों की पीठ पर हाथ नहीं रखना चाहिए, बेड मैनर्स ताऊजी!’ सोच के इस समय में वास्तविकताएं तो चालाकियों के आवरण में कहीं दुबक ही जाती हैं. संग्रह की कहानियां ‘विश्वास’,’रोशनी के पंख’,’पिछली खिड़की’, इसकी गवाही देती हैं. बाल श्रमिक नंदू की ‘तस्वीर’ मंत्री को चाय का गिलास थमाते हुए अखबार में छप जाती है, किन्तु दूसरे ही दिन बाल श्रम क़ानून के भय के कारण मालिक उसे दूकान से निकाल देता है.

संग्रह की कई कहानियों में अपनी जड़ों, शहर,बस्ती और अपने परिवेश से दूर होने और अलगाव के दुखों और अतीत की स्मृतियों की अभिव्यक्ति बहुत मार्मिक और उद्वेलित कर देने वाले तरीके से हुई है. ‘संगीत सभा’,’घूँसा’,’भिन्डी का भाव’ आदि ये ऐसी ही कुछ ख़ूबसूरत कहानियां हैं. ये कहानियां माध्यम वर्ग की आडम्बर युक्त सामाजिक संरचना के विरुद्ध सवाल भी उठाने का प्रयास करती हैं. कहानियों में तकलीफों और असामंजस्य की ईमानदार अभिव्यक्ति हुई है.
‘ज्वार भाटा’,’उजाले की ओर’, प्रेअरानास्पद हैं लेकिन ‘समाधि’ और ‘केकड़ा’ कहानियां पाठकों को झकझोर देती हैं.

संग्रह की कहानी ‘रंग-बेरंग’ को रेखांकित किया जाना बहुत जरूरी है. कसारिया और हरे रंग के कपडे का थान खरीदकर उनकी झंडियाँ बनाने वाला बूढ़ा दरजी अपने पोते के लिए दो मीटर सफ़ेद कपड़ा कफ़न के लिए खरीदता है,जो दंगों की चपेट में आ गया है. यह कहानी हमें बैचैन कर देती है.जब तक सामने रहती है राहत की सांस नहीं लेने देती. मन और शरीर रोष और तनाव से भर उठते हैं.

कथाकार ब्रजेश कानूनगो के पात्र वास्तविक जीवन के द्वंद्व,,असंतोष,असहमति,और नकार से उबलते, खीजते,छटपटाते हुए हैं. नए कथ्य, नए जीवनानुभाव, निजी अनुभूतियों, परिवेश और भौगोलिक गंधों की ईमानदार प्रस्तुतियां हैं ‘रिंगटोन’ की छोटी-बड़ी कहानियां. इनमें क्रोध कम है लेकिन शिल्प और कहने का बेहद कारगर तरीका है, जो सीधे कथ्य को दिलो-दिमाग तक पहुँचाने में सफल हो जाता है. ‘रिंगटोन’ संग्रह की कहानियों में सामाजिक विसंगतियों के विरोध में एक प्रतिरोध (प्रोटेस्ट) भी है. ब्रजेश भावुकता का सहारा नहीं लेते,विवेक और तर्क उनकी कहानियों में मौजूद दिखाई देते है. एक सजग कथाकार के रूप में हमारे सामने एक ऐसे संग्रह के जरिये आते हैं ,जिनमें रिश्तों की ऊष्मा,भावनाओं की कोमलता और मानवता के मूल्यों से हमारा साक्षात्कार होता है.

(पुस्तक- रिंगटोन (छोटी-बड़ी कहानियां) ,लेखक- ब्रजेश कानूनगो, प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, बाईस गोदाम,जयपुर-302006. मूल्य-रु 100 मात्र)

रजनी रमण शर्मा
42, मिश्र नगर, इंदौर-452009
मो 9826390787   

   





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