Monday, March 19, 2012

सुन्दर ही सेक्सी है


व्यंग्य
सुन्दर ही सेक्सी है
ब्रजेश कानूनगो

भाषा का भी ठीक उसी प्रकार क्रमिक विकास हुआ है जैसे भ्रष्टाचार का हुआ है. जब पहली बार किसी ने स्वार्थसिद्धी के लिए रिश्वत ली और दी होगी तब उसे  कुछ भी कहा गया होगा 'भ्रष्टाचार ' तो शायद नहीं ही कहा गया होगा. किसी अधिकृत काम को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पैसे लेकर काम कर दिए जाने को बुराई के रूप में  'दलाली' कहा जाता था लेकिन अब दलाली ही अधिकृत हो गया है. कमीशन कहें या फ्रेंचाइसी क्या फर्क पडता है.  है तो वह दलाली ही. असल में भाषा अभिव्यक्ति को दूसरे तक पहुंचाने का माध्यम होती है और शब्द वे संकेत होते हैं जो उस क्रिया या अनुभूति को प्रमाणित करते हैं. सूरज को पृथ्वी कहने से वह आग उगलना बंद नहीं कर देगा. पहली बार किसी ने पृथ्वी को पृथ्वी तथा सूरज को सूरज कहा होगा. यदि सूरज को सबसे पहले  'जहाज'  कह दिया होता तो जहाज से ही हमारे पास रोशनी और धूप पहुँचती.

सुबह का नजारा देखिए. भोर की कैसी सुन्दर बेला होती है. इधर पक्षियों का कलरव शुरू हुआ कि  पूरब से सूरज की किरणें हल्का हल्का प्रकाश बिखेरने लगती हैं .पहाडियों के पीछे से धीरे धीरे गुलाबी गोला ऊपर उठने लगता है. मन में अनोखा  अहसास या अनुभूति पैदा होती है तो मुँह से निकल पडता है..सुन्दर..अतिसुन्दर ..! सुन्दर शब्द तो मात्र उस अनुभूति को पहचान दिलानेवाला संकेत है. यह प्रमाणीकरण यदि 'नमकीन' शब्द से प्रारम्भ में कर दिया  गया होता तो हम सुन्दर या अतिसुन्दर की अनुभूति के लिए 'नमकीन' शब्द का संकेत चुनते और आज सुबह-सुबह का नजारा देखकर हमारे मुँह से निकलता...अहा..! क्या नमकीन नजारा है.

भाषा विकास की इस अवधारणा को हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के एक वक्तव्य से भी बल मिला है. उन्होंने कहा कि यदि कोई सौन्दर्य प्रेमी व्यक्ति लडकियों को 'सेक्सी' कहे तो उसे सकारात्मक रूप से लिया जाना चाहिए. क्योंकि 'सेक्सी' का अर्थ होता है  ' ऐसी सुंदरता जो आकर्षित करे '.  महिला आयोग के बयान पर बेवजह बहस चल पडी है .वस्तुत: उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था.   सुन्दर कहो या सेक्सी कहो, क्या फर्क पडता है .जो सुन्दर है वह सुन्दर है. जो सेक्सी है वह सेक्सी है. जो सुन्दर है वह अपनी सुंदरता पर गर्व करे,जो सेक्सी है वह अपनी सेक्सियत पर गर्व करे.  अरे भाई इस कहने सुनने से भी कोई फर्क पडता है भला.  पता नहीं भंवरी देवी को कोई सुन्दर कहता था या कुछ और कहता था लेकिन  जो होना था सो हुआ. बेटमा में या भोपाल में या लसूडिया में या हर कहीं मनुष्य की मादा प्रजाति के साथ  जो हो रहा है उसमे इस 'सेक्सी' संकेत या शब्द का क्या दोष या भूमिका रही है, ज़रा बताएं ?  भैया पहले उन उपभोक्तावादी बाजारू संकेतों को पहचानने की कोशिश करो जो अपनी तहजीब और मूल्यों को प्रदूषित करके  हमारे  चरित्र और आचरण को सेक्सी अथवा नमकीन (जो कहना चाहें) बनाने का षड़यंत्र रच रहे हैं.

ब्रजेश कानूनगो
503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,कनाडिया रोड, इंदौर-18


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