Friday, April 15, 2011

चूहाकरण




चूहाकरण
ब्रजेश कानूनगो

अमिताभ बच्चन अपनी आवाज का पेटेंट करवाकर भले ही निश्चिंत हो जाएँ किं कोई व्यक्ति उनकी आवाज की नकल नहीं कर सकेगा किंतु जरा सचिए कोई चूहा उनकी आवाज में मेरे अँगने मेँ गाकर उनकी कमाई में सैंध लगा देगा तब वे क्या कर सकेंगें। ऐसा ही कुछ संभव कंर दिखाया है जापान के जीव वैज्ञानिकों ने। उन्होनें ऐसा चूहा विकसित कर दिखाया है जो चिडिया की तरह चहचाता है। वैज्ञानिकों का दावा है किं इससे मानवीय भाषाओं तथा उच्चारण के बारे में जानकारियाँ प्राप्त हो सकेगीं। इस बात में कोई शक नही है कि चूहा न सिर्फ़ गाएगा बल्कि मनुष्य की तरह बोल भी सकेगा ।
दरअसल चूहा बड़ा विलक्षण जीव होता है। दिखने में भले ही वह छोटा सा प्राणी है लेकिन जब -जब अवसर मिला है उसने अपनी शक्ति तथा प्रतिभा दिखाई है। एक कहानी आपने जरूर सुनी होगी- एक तीन माह का हाथी और तीन माह का चूहा मिले तो हाथी ने अपनी उम्र बताई,तब चूहा बोला- हूँ तो मै भी तीन माह का ही लेकिन इन दिनों तनिक अस्वस्थ हूँ।' चूहे के संवाद से शातिरता टपकती दिखाई देती है। चूहा ताकतवर होनें के साथ-साथ चतुर भी होता है। ताकत और चतुराई का समन्वय प्रतिभा कहलाती है।दिखना और होना अलग-अलग बातें हैं । जो दिखता है वह होता नहीं,जो होता है वह दिखता नहीं।अरे साला चूहा कहीं का' कहना अपने अर्थ बदल चुका है।चूहा होना डरपोक होने की उपमा नहीं है चूहा होना ,महाबली होने का,चतुर होने का,प्रतिभा संपन्न होने का परिचायक है। जो चूहा है वह कुतर सकता है। भारतीय चूहों ने डेनमार्क के मजबूत प्रमाणित कैबल कुतर डाले,पाठ्य पुस्तकं निगम की पुस्तकें वुᆬतर डालीं, खेतों और गोदामों मे रखा अनाज वुᆬतर डाला दपत्तरों की अनेक महत्वपूर्ण फाइलों को वुᆬतर कर अनेक महत्पूर्ण मामलो का सहज समापन कर दिया। चूहों को कुतरने का काफी अच्छा अभ्यास होता है । अंडरवर्ल्ड की तरह चूहों का अपना अलग साम्राज्य होता है। ईस्ट इंडिया कपनी की तरह साम्राज्य में वृद्धि करना इनका प्राथमिक लक्ष्य रहता है। इसी उक्तेश्य से इनकी गुपचुप घुसपेठ आतंकिंयों केए तरह सदैव चलती रहती है। फिर इनका साम्राज्य इस कदर बढ़ जाता है कि फिर उनसे मुक्ति के लिए संघर्ष किसी स्वतंत्रता आंदोलन से कंम नहीं हो सकता । चूहे सदा से मनुष्यों के प्रेरणा स्रोत्र रहे हैं। समझदार लोगों ने उनसे पर्याप्त प्रेरणा ली है। अपने हित के लिए चतुरता और कुतरने का कौशल, मनुष्य नें चूहों से ही सीखा है। चूहों के अनुयायी, पुल कुतर रहे हैं ,सड़कें कुतर रहे हैं, सरकारी संपत्ति कुतर रहे हैं, खजाना कुतर रहे हैं समुचे राष्ट्र के हर हिस्से को ये चूहे वुᆬतर जाना चाहते हैं। चूहों से प्रेरित कुतरणकला के लिए एक खुला विश्वविद्यालय देश में संचालित है जो विशिष्ठ क्षेत्रों में कुतरन के संदर्भ में डिग्रियाँ बाँट रहा है। स्थिति तो यह है कि कुतरन विषय भी अब केवल बेसिक अथवा प्लेन नहीं रहा है,वहाँ भी इसका विशेषज्ञीकरण हो गया है। उदाहरणार्थ- जैसे तकनीकी कुतरन-२जी स्पेक्ट्रम, कामनवैल्थ गेम्स याने स्पोर्टिक कुतरन, सत्यम याने आई टी कुतरन, हाउसिंग याने वित्तीय कुतरन, तेलगी याने राजस्व कुतरन,आदर्श याने शहीदी कुतरन, चारा, अनाज ,जमीन, तहलका और न जाने कौन-कौन से नए-नए विषयों मे लोग विशेषज्ञता हासिल कर रहे हैं। पूछवाले चूहों को समाप्त करने के लिए सरकारें पुरस्कार देतीं रहीं हैं,चूहा मुक्ति के लिए करोडों की राशि आबंटित हुई लेकिन बगैर पूछवाले डिग्रीधारी मूषकों ने उसे भी कुतर डाला । मनुष्यों के इस चूहाकरण पर कैसे रोक लगे, इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकंता महंगाई डायन के वध से भी ज्यादा जरूरी प्रतीत हो रही है। अन्ना हजारे के प्रयास शायद ऐसा कंरने में सफल हो सकेंगे । पूरा देश उनके साथ है।

ब्रजेश कानूनगो 503,गोयल रिजेंसी,चमेली पार्क,कंनाडिया रोड,इंदौर-18


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